SUPREME COURT OF INDIA

 

भारत का उच्चतम न्यायालय

SUPEREM COURT OF INDIA

 

 

भारत का उच्चतम न्यायालय या भारत का सर्वोच्च न्यायालय  

 

भारत का शीर्ष न्यायिक प्राधिकरण(Judicial Authority) है जिसे भारतीय संविधान के भाग 5 अध्याय 4 के तहत स्थापित किया गया है।

 

 

भारतीय संघ की अधिकतम और व्यापक न्यायिक अधिकारिता उच्चतम न्यायालय को प्राप्त हैं। 

 

 

भारतीय संविधान के अनुसार उच्चतम न्यायालय की भूमिका संघीय न्यायालय और भारतीय संविधान के संरक्षक की है।

 

भारतीय संविधान के अनुच्छेद(Article) 124 से 147 तक में वर्णित नियम उच्चतम न्यायालय की संरचना और अधिकार क्षेत्रों(Structure and Judicature)  की नींव हैं।

 

 

उच्चतम न्यायालय सबसे उच्च अपीलीय (Highest Appellate) अदालत है जो राज्यों(States) और केंद्र शासित प्रदेशों(Union Territories) के उच्च न्यायालयों के फैसलों के खिलाफ अपील सुनता है।

 

 

इसके अलावा, राज्यों के बीच के विवादों या मौलिक अधिकारों और मानव अधिकारों के गंभीर उल्लंघन से सम्बन्धित याचिकाओं को आमतौर पर उच्च्तम न्यायालय के समक्ष सीधे रखा जाता है।

 

 

भारत के उच्चतम न्यायालय का उद्घाटन 28 जनवरी 1950 को हुआ

 

 

और उसके बाद से इसके द्वारा 24,000 से अधिक निर्णय दिए जा चुके हैं।

 

 

 वेतन और भत्ते – भारतीय संविधान के अनुच्छेद 125 मे कहा गया कि उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश के वेतन व भत्ते दिये जाए जो संसद (भारत की संचितनिधि consolidated fund) निर्मित करे ।

 

 

न्यायाधीश के लिए वेतन भत्ते अधिनियम 1जनवरी 2009 के अनुसार सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश को 280000 मासिक आय और न्यायाधीश को 250000 मासिक आय प्राप्त हुए है।

 

 

निःशुल्क आवास मनोरंजन स्टाफ कार और यातायात भत्ता( travelling allowance ) मिलता है।इनके लिए वेतन संसद तय करती है जो कि संचित निधि(Consolidated funds) से पारित होती है।

 

 

कार्यकाल के दौरान वेतन मे कोई कटौती नही होती है।

 

 

न्यायाधीश के कार्यकाल -65 वर्ष की आयु ।

 

वर्तमान में सर्वोच्च न्यायलाय के मुख्य न्यायधीश  जस्टिस नुतालपति वेंकट रमना  है

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सुप्रीम कोर्ट में वर्तमान में 34 जज नियुक्त हैं।

 

 

 

 

 

 

 

न्यायाधीशों की योग्यताएँ(QUALIFICATIONS)

  • भारत का नागरिक हो।
  • कम से कम पांच साल के लिए उच्च न्यायालय का न्यायाधीश या दो या दो से अधिक न्यायालयों में लगातार कम से कम पांच वर्षों तक न्यायाधीश के रूप में कार्य कर चुका हो। अथवा
  • किसी उच्च न्यायालय या न्यायालयों में लगातार दस वर्ष तक अधिवक्ता रह चुका हो। अथवा
  • वह व्यक्ति राष्ट्रपति की राय में एक प्रतिष्ठित विधिवेत्ता होना चाहिए।
  • यहाँ पर ये जानना आवश्यक है की उच्चतम न्यायालय का न्यायाधीश बनने हेतु किसी भी प्रदेश के उच्च न्यायालय में न्यायाधीश का पांच वर्ष का अनुभव होना अनिवार्य है ,

और वह ६२ वर्ष की आयु पूरी न किया हो, वर्तमान समय में CJAC निर्णय लेगी। किसी उच्च न्यायालय के न्यायाधीश या फिर उच्चतम न्यायालय या उच्च न्यायालय के सेवानिवृत्त न्यायाधीश को उच्चतम न्यायालय के एक तदर्थ न्यायाधीश के रूप में नियुक्त किया जा सकता है।

कार्यकाल(TENURE)

उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीशों की सेवानिवृत्ति (Retirement)  की आयु ६५ वर्ष(65 years) होती है।

 

न्यायाधीशों को केवल (महाभियोगImpeachment) दुर्व्यवहार या असमर्थता के सिद्ध होने पर संसद के दोनों सदनों द्वारा दो-तिहाई(two- third) बहुमत से पारित प्रस्ताव के आधार पर ही राष्ट्रपति द्वारा हटाया जा सकता है।

पदच्युति(DISMISSAL)

उच्चतम न्यायालय के न्यायधीशों की राष्ट्रपति तब पदच्युत करेगा जब संसद के दोनों सदनों के कम से कम 2/3 (Two -Third)उपस्थित तथा मत देने वाले तथा सदन के कुल बहुमत(majority) द्वारा पारित प्रस्ताव जो कि सिद्ध कदाचार(Proven misconduct) या अक्षमता के आधार पर लाया गया हो के द्वारा उसे अधिकार दिया गया हो। ये आदेश उसी संसद सत्र मे लाया जायेगा जिस सत्र मे ये प्रस्ताव संसद ने पारित किया हो। अनु 124[5] मे वह प्रक्रिया वर्णित है जिससे जज पदच्युत(terminate or discharged from office) होते है। इस प्रक्रिया के आधार पर संसद ने न्यायधीश अक्षमता अधिनियम 1968 पारित किया था। इसके अन्तर्गत

  • (१) संसद के किसी भी सदन मे प्रस्ताव लाया जा सकता है। लोकस्भा मे 100 राज्यसभा मे 50 सदस्यों का समर्थन अनिवार्य है
  • (२) प्रस्ताव मिलने पर सदन का सभापति एक 3 सदस्य समिति बनायेगा जो आरोपों की जाँच करेगी। समिति का अध्यक्ष सप्रीम कोर्ट का कार्यकारी जज होगा दूसरा सदस्य किसी हाई कोर्ट का मुख्य कार्यकारी जज होगा। तीसरा सदस्य माना हुआ विधिवेत्ता होगा। इसकी जाँच-रिपोर्ट सदन के सामने आयेगी। यदि इस मे जज को दोषी बताया हो तब भी सदन प्रस्ताव पारित करने को बाध्य नहीं होता किंतु यदि समिति आरोपों को खारिज कर दे तो सदन प्रस्ताव पारित नही कर सकता है।

अभी तक सिर्फ एक बार किसी जज के विरूद्ध जांच की गयी है। जज रामास्वामी दोषी सिद्ध हो गये थे किंतु संसद मे आवश्यक बहुमत के अभाव के चलते प्रस्ताव पारित नहीं किया जा सका था।

कॉलेजियम के जरिए कैसे होता है सुप्रीम कोर्ट में जजों का चयन
सुप्रीम कोर्ट में पांच वरिष्ठ जजों की एक टीम होती है, जिसमें चीफ जस्टिस के अलावा सुप्रीम कोर्ट के चार सबसे वरिष्ठ जज होते हैं. ऐसे में सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) के चीफ जस्टिस अन्य जस्टिस के साथ आपसी विचार-विमर्श करके बहुमत के आधार पर जजों की नियुक्ति का फैसला लेते हैं.

यह फैसला लेने के बाद कॉलिजियम (Collegium) के सदस्य किसी कुछ नामों पर सहमति बनाते हैं. फिर वे ये प्रस्तावित नाम राष्ट्रपति के पास अंतिम फैसले के लिए भेजते हैं. यह राष्ट्रपति के हाथ में है कि वो इस सलाह से सहमत हैं या नहीं. राष्ट्रपति चाहें तो कोलेजियम के प्रस्तावित नामों को उम्मीदवारों के तौर पर मान सकते हैं लेकिन वे चाहें तो इस अर्जी को वापस भी लौटा सकते हैं.

हालांकि, कॉलिजियम अगर किसी नाम को फिर से प्रस्तावित करता है तो राष्ट्रपति (President) के लिए उस नाम पर मुहर लगानी ही पड़ती है. इस तरह से कोलिजियम को दिए गए अधिकारों के तहत राष्ट्रपति के दोबारा इनकार करने के बावजूद सुप्रीम कोर्ट के लिए जज चुने जाने का अंतिम अधिकार कॉलिजियम के पास ही होता है.

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