Sources of Ancient Indian History for exams

Sources of Ancient Indian History

प्राचीन भारतीय इतिहास के स्रोत

 

प्राचीन भारत के इतिहास के सम्बन्ध में जानकारी के मुख्य स्त्रोतों को 3 भागों में बांटा जा सकता है, यह 3 स्त्रोत निम्नलिखित हैं :

  • पुरातात्विक स्त्रोत
  • साहित्यिक स्त्रोत
  • विदेशी स्त्रोत

 

 

(i) पुरातात्विक स्त्रोत (Archaeological Sources)INDIAN SCULPTURE

पुरातात्विक स्त्रोत का सम्बन्ध प्राचीन अभिलेखों, सिक्कों, स्मारकों, भवनों, मूर्तियों तथा चित्रकला से है, यह साधन काफी विश्वसनीय हैं।

 

इन स्त्रोतों की सहायता से प्राचीन काल की विभिन्न मानवीय गतिविधियों की  काफी सटीक जानकारी मिलती है।

 

इन स्त्रोतों से किसी समय विशेष में मौजूद लोगों के रहन-सहन, कला, जीवन शैली व अर्थव्यवस्था इत्यादि का ज्ञान होता है।

 

इनमे से अधिकतर स्त्रोतों का वैज्ञानिक सत्यापन किया जा सकता है।

 

इस प्रकार के प्राचीन स्त्रोतों का अध्ययन करने वाले अन्वेषकों को पुरातत्वविद  कहा जाता है।

 

 

सिक्के (Coins)

 

प्राचीन काल में लेन-देन के लिए उपयोग की जाने वाली वस्तु विनिमय व्यवस्था (Barter System) के बाद सिक्के प्रचलन में आये।

 

यह सिक्के विभिन्न धातुओं जैसे सोना तांबा, चाँदी इत्यादि से निर्मित किये जाते थे।

 

प्राचीन भारतीय सिक्कों की एक विशिष्टता यह है कि इनमे अभिलेख नहीं पाए गए हैं।

 

आमतौर प्राचीन सिक्कों पर चिह्न पाए गए हैं। इस प्रकार से सिक्कों को आहत सिक्के कहा जाता है।

 

इन सिक्कों का सम्बन्ध ईसा से पहले 5वीं सदी से है।

 

उसके पश्चात् सिक्कों में थोडा बदलाव आया, इन सिक्कों में तिथियाँ, राजा तथा देवताओं के चित्र अंकित किये जाने लगे।

 

आहत सिक्कों के सबसे प्राचीन भंडार पूर्वी उत्तर प्रदेश तथा मगध से प्राप्त हुए हैं।

 

भारत में स्वर्ण मुद्राएं सबसे पहले हिन्द-यूनानी शासकों ने जारी की, और इन शासकों ने सिक्कों के निर्माण में “डाई विधि” का उपयोग किया।

 

कुषाण शासकों द्वारा जारी की गयी स्वर्ण मुद्राएं सबसे अधिक शुद्ध थी।

 

जबकि गुप्त शासकों द्वारा सबसे ज्यादा मात्र में स्वर्ण मुद्राएं जारी की।

 

सातवाहन शासकों ने सीसे की मुद्राएं जारी की।

 

 

अभिलेख 

 

भारतीय इतिहास के सम्बन्ध में अभिलेखों का स्थान अति महत्वपूर्ण है, भारतीय इतिहास के बारे में प्राचीन काल के कई शासकों के अभिलेखों से काफी महत्वपूर्ण जानकारी प्राप्त हुई है।

 

यह अभिलेख पत्थर, स्तम्भ, धातु की पट्टी तथा मिट्टी की वस्तुओं पर उकेरे हुए प्राप्त हुए हैं।

 

इन प्राचीन अभिलेखों के अध्ययन को पुरालेखशास्त्र कहा जाता है, जबकि इन अभिलेखों की लिपि के अध्ययन को पुरालिपिशास्त्र कहा जाता है।

 

जबकि अभिलेखों के अधययन को Epigraphy कहा जाता है।

 

 

अभिलेखों का उपयोग शासकों द्वारा आमतौर पर अपने आदेशों का प्रसार करने के लिए करते थे।

 

 

यह अभिलेख आमतौर पर ठोस सतह वाले स्थानों अथवा वस्तुओं पर मिलते हैं, लम्बे समय तक अमिट्य बनाने के लिए इन्हें ठोस सतहों पर लिखा जाता है।

 

इस प्रकार के अभिलेख मंदिर की दीवारों, स्तंभों, स्तूपों, मुहरों तथा ताम्रपत्रों इत्यादि पर प्राप्त होते हैं। 

 

यह अभिलेख अलग-अलग भाषाओँ में लिखे गए हैं, इनमे से प्रमुख भाषाएँ संस्कृत, पाली और संस्कृत हैं, दक्षिण भारत की भी कई भाषाओँ में काफी अभिलेख प्राप्त हुए हैं।

 

 

भारत के इतिहास के सम्बन्ध में सबसे प्राचीन अभिलेख सिन्धु घाटी सभ्यता से प्राप्त हुए हैं,

 

यह अभिलेख औसतन 2500 ईसा पूर्व के समयकाल के हैं।

 

सिन्धु घाटी सभ्यता की लिपि अभी तक डिकोड न किया जाने के कारण अभी तक इन अभिलेखों का सार अभी तक ज्ञात नहीं हो सका है।

 

सिन्धु घाटी सभ्यता की लिपि में प्रतीक चिन्हों का उपयोग किया गया है, और अभी तक इस लिपि का डिकोड नहीं किया जा सका है।

 

 

पश्चिम एशिया अथवा एशिया माइनर के बोंगज़कोई नामक स्थान से भी काफी प्राचीन अभिलेख प्राप्त हुए हैं,

 

हालांकि यह अभिलेख सिन्धु घाटी सभ्यता के जितने पुराने नहीं है।

 

बोंगज़कोई से प्राप्त अभिलेख लगभग 1400 ईसा पूर्व के समयकाल के हैं।

 

न अभिलेखों की विशेष बात यह है कि इन अभिलेखों में वैदिक देवताओं इंद्र, मित्र, वरुण तथा नासत्य का उल्लेख मिलता है।

 

ईरान से भी प्राचीन अभिलेख नक्श-ए-रुस्तम प्राप्त हुए हैं, इन अभिलेखों में प्राचीन काल में भारत और पश्चिम एशिया के सम्बन्ध में वर्णन मिलता है।

 

भारत के प्राचीन इतिहास के अधययन में यह  अभिलेख अति महत्वपूर्ण हैं, इनसे प्राचीन भारत की अर्थव्यवस्था, व्यापार इत्यादि के सम्बन्ध में पता चलता है।

 

 

ईरान में कस्साइट अभिलेख प्राप्त हुए हैं, जबकि सीरिया के मितन्नी अभिलेख में आर्य नामों का वर्णन किया गया है।

 

मौर्य सम्राट अशोक ने अपने शासनकाल में काफी अभिलेख स्थापित किये।

 

ब्रिटिश पुरातत्वविद जेम्स प्रिन्सेप ने सबसे पहले 1837 में अशोक के अभिलेखों को डिकोड किया।

 

यह अभिलेख सम्राट अशोक द्वारा ब्राह्मी लिपि में उत्कीर्ण करवाए गए थे।

 

अभिलेख उत्कीर्ण करवाने का मुख्य उद्देश्य शासकों द्वारा अपने आदेश को जन-सामान्य तक पहुँचाने के लिए किया जाता था।

 

 

सम्राट अशोक के अतिरिक्त अन्य शासकों ने भी अभिलेख उत्कीर्ण करवाए, यह अभिलेख सम्राट द्वारा किसी क्षेत्र पर विजय अथवा अन्य महत्वपूर्ण अवसर पर उत्कीर्ण करवाए जाते थे।

 

प्राचीन भारत के सम्बन्ध कुछ महत्वपूर्ण अभिलेख इस प्रकार हैं –

 

ओडिशा के खारवेल में हाथीगुम्फा अभिलेख,

 

रूद्रदमन द्वरा उत्कीर्ण किया गया जूनागढ़ अभिलेख,

 

सातवाहन शासक गौतमीपुत्र शातकर्णी का नासिक में गुफा में उत्कीर्ण किया गया अभिलेख,

 

समुद्रगुप्त का प्रयागस्तम्भ अभिलेख,

 

स्कंदगुप्त का जूनागढ़ अभिलेख,

 

यशोवर्मन का मंदसौर अभिलेख,

 

पुलकेशिन द्वितीय का ऐहोल अभिलेख,

 

प्रतिहार सम्राट भोज का ग्वालियर अभिलेख

 

तथा विजयसेन का देवपाड़ा अभिलेख।

 

 

अधिकतर प्राचीन अभिलेखों में प्राकृत भाषा का उपयोग किया गया है,

 

अभिलेख सामान्यतः उस समय की प्रचलित भाषा में खुदवाए जाते थे।

 

कई अभिलेखों में संस्कृत भाषा में भी सन्देश उत्कीर्ण किये गए हैं।

 

संस्कृत का उपयोग अभिलेखों में ईसा की दूसरी शताब्दी में दृश्यमान होता है,

 

संस्कृत अभिलेख का प्रथम प्रमाण जूनागढ़ अभिलेख से मिलता है,

 

यह अभिलेख संस्कृत भाषा में लिखा गया था।

 

जूनागढ़ अभिलेख 150 ईसवी में शक सम्राट रूद्रदमन द्वारा उत्कीर्ण करवाया गया था।

 

रूद्रदमन का शासन काल 135 ईसवी से 150 ईसवी के बीच था।

 

प्राचीन भारत की जानकारी के लिए अन्य उपयोगी पुरातात्विक स्त्रोत

INDIAN ARCHITECTURE

 

अभिलेख एवं सिक्कों से प्राचीन काल के सम्बन्ध में काफी सटीक जानकारी प्राप्त होती है।

 

लेकिन अभिलेखों और सिक्कों के अलावा अन्य महत्वपूर्ण स्त्रोत भी हैं जिनसे प्राचीन काल के सम्बन्ध में उपयोगी जानकारी प्राप्त होती है, इन स्त्रोतों में इमारतें, मंदिर, स्मारक, मूर्तियाँ, मिट्टी से बने बर्तन तथा चित्रकला प्रमुख है।

 

 

प्राचीनकाल की वास्तुकला की जानकारी के लिए इमारतें जैसे मंदिर व भवन काफी उपयोगी स्त्रोत हैं।

 

वास्तुकला की जानकारी के साथ-साथ इन इमारतों से उस समय की सामाजिक, आर्थिक व धार्मिक व्यवस्था की भी जानकारी मिलती है।

 

 

प्राचीन भारत की जानकारी के सम्बन्ध में स्मारक अति महत्वपूर्ण है,

 

इन स्मारकों को दो भागों में विभाजित किया जा सकता है – देशी तथा विदेशी स्मारक।

 

देशी स्मारकों में हड़प्पा, मोहनजोदड़ो, नालंदा, हस्तिनापुर प्रमुख हैं।

 

जबकि विदेशी समारकों में कंबोडिया का अंकोरवाट मंदिर, इंडोनेशिया में जावा का बोरोबुदूर मंदिर तथा बाली से प्राप्त मूर्तियाँ प्रमुख हैं।

 

बोर्नियों के मकरान से प्राप्त मूर्तियों में कुछ तिथियाँ अंकित हैं, यह तिथियाँ कालक्रम को स्पष्ट करने में काफी उपयोगी हैं।

 

इन स्त्रोतों से प्राचीनकाल की वास्तुकला शैली के सम्बन्ध में महत्वपूर्ण जानकारी प्राप्त होती है।

 

 

भारत में कई धर्मों का उद्भव व विकास होने के कारण धार्मिक मूर्तियाँ काफी प्रचलं में रही हैं।

 

मूर्तियाँ प्राचीन काल की धार्मिक व्यवस्था, संस्कृति एवं कला के बारे में जानकारी प्राप्त करने का महत्वपूर्ण साधन है।

 

प्राचीन भारत में सारनाथ, भरहुत, बोधगया और अमरावती मूर्तिकला के मुख्य केंद्र थे।

 

विभिन्न मूर्तिकला शैलियों में गांधार कला तथा मथुरा कला प्रमुख हैं।

 

 

मृदभांड का प्रकार समय के साथ साथ परिवर्तित होता गया,

 

सिन्धु घाटी सभ्यता में लाल मृदभांड, उत्तरवैदिक काल में चित्रित धूसर मृदभांड

 

जबकि मौर्य काल में काले पॉलिश किये गए मृदभांड प्रचलित थे।

 

मृदभांड के प्रकार व रूप में नवीनता व प्रगति अलग अलग समयकाल में हुई।

 

 

चित्रकला से प्राचीनकाल के समाज व व्यवस्थाओं के बारे में विविध जानकारी प्राप्त होती है।

 

चित्रों के माध्यम से प्राचीन समय के लोगो के जीवन, संस्कृति तथा कला की जानकारी मिलती है।

 

मध्य प्रदेश में स्थित भीमबेटका की गुफाओं के चित्र से प्राचीनकाल की सांस्कृतिक विविधता का आभास होता है

 

 

(ii) साहित्यिक स्त्रोत

 

भारत के इतिहास में के सन्दर्भ में सर्वाधिक स्त्रोत साहित्यिक स्त्रोत हैं।

 

प्राचीन काल में पुस्तकें हाथ से लिखी जाती थी,

 

हाथ से लिखी गयी इन पुस्तकों को पांडुलिपि कहा जाता है। 

 

पांडुलिपियों को ताड़पत्रों तथा भोजपत्रों पर लिखा जाता था। 

 

इस प्राचीन साहित्य को 2 भागों में बांटा जा सकता है :-

 

 

1-धार्मिक साहित्य

 

 

भारत में प्राचीन काल में तीन मुख्य धर्मो हिन्दू, बौद्ध तथा जैन धर्म का उदय हुआ।

 

इन धर्मों के विस्तार के साथ-साथ विभिन्न दार्शनिकों, विद्वानों तथा धर्माचार्यो द्वारा अनेक धार्मिक पुस्तकों की रचना की गयी।

 

इन रचनाओं में प्राचीन भारत के समाज, संस्कृति, स्थापत्य, लोगों की जीवनशैली व अर्थव्यवस्था इत्यादि के सम्बन्ध में महत्वपूर्ण जानकारी मिलती है।

 

धार्मिक साहित्य की प्रमुख रचनाएँ निम्नलिखित हैं:

 

हिन्दू धर्म से सम्बंधित साहित्य

INDIAN CULTURE -PAINTINGS

हिन्दू धर्म विश्व का सबसे प्राचीनतम धर्मो में से एक है।

 

प्राचीन भारत में इसका उदय होने से प्राचीन भारतीय समाज की विस्तृत जानकारी हिन्दू धर्म से सम्बंधित पुस्तकों से मिलती हैं।

 

हिन्दू धर्म में अनेक ग्रन्थ, पुस्तकें तथा महाकाव्य इत्यादि की रचना की गयी हैं,

 

इनमे प्रमुख रचनाएँ इस प्रकार से है – वेद, वेदांग, उपनिषद, स्मृतियाँ, पुराण, रामायण एवं महाभारत।

 

इनमे ऋग्वेद सबसे प्राचीन है। 

 

इन धार्मिक ग्रंथों से प्राचीन भारत की राजव्यवस्था, धर्म, संस्कृति तथा सामाजिक व्यवस्था की विस्तृत जानकारी मिलती है।

 

 

वेद

 

हिन्दू धर्म में वेद अति महत्वपूर्ण साहित्य हैं,

 

वेद की कुल संख्या चार है।

 

ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद तथा अथर्ववेद 4 वेद हैं।

 

ऋग्वेद विश्व की सबसे प्राचीन पुस्तकों में से एक है, इसकी रचना लगभग 1500-1000 ईसा पूर्व के समयकाल में की गयी।

 

जबकि यजुर्वेद, सामवेद तथा अथर्ववेद  की रचना लगभग 1000-500 ईसा पूर्व  के समयकाल में की गयी। 

 

ऋग्वेद में देवताओं की स्तुतियाँ हैं।

 

यजुर्वेद का सम्बन्ध यज्ञ के नियमों तथा अन्य धार्मिक विधि-विधानों से है।

 

सामवेद का सम्बन्ध यज्ञ के मंत्रो से है।

 

जबकि अथर्ववेद में धर्म, औषधि तथा रोग निवारण इत्यादि के बारे में लिखा गया है।

 

 

ब्राह्मण

ब्राह्मणों को वेदों के साथ सलंगन किया गया है, ब्राह्मण वेदों के ही भाग हैं।

 

प्रत्येक वेद के ब्राह्मण अलग हैं।

 

यह ब्राह्मण ग्रंथ  गद्य शैली में हैं,

 

इनमे विभिन्न विधि-विधानों तथा कर्मकांड का विस्तृत वर्णन है।

 

ब्राह्मणों में वेदों का सार सरल शब्दों में दिया गया है,

 

इन ब्राह्मण ग्रंथों की रचना विभिन्न ऋषियों द्वारा की गयी।

 

ऐतरेय तथा शतपथ ब्राह्मण ग्रंथो के उदहारण हैं।

 

आरण्यक

 

आरण्यक शब्द ‘अरण्य’ से से बना है, जिसका शाब्दिक अर्थ “वन” होता है।

 

आरण्यक वे धर्म ग्रन्थ हैं जिन्हें वन में ऋषियों द्वारा लिखा गया।

 

आरण्यक ग्रंथों में अध्यात्म तथा दर्शन का वर्णन है,

 

इनकी विषयवस्तु काफी गूढ़ है। 

 

आरण्यक की रचना ग्रंथो के बाद हुई और यह अलग-अलग वेदों के साथ संलग्न है, परन्तु अथर्ववेद को किसी भी आरण्यक से नहीं जोड़ा गया है।

 

 

वेदांग

 

जैसा की नाम से स्पष्ट है, वेदांग, वेदों के अंग हैं। 

 

वेदांगों में वेद के गूढ़ ज्ञान को सरल भाषा में लिखा गया है।

 

शिक्षा, कल्प, व्याकरण, निरुक्त, छंद व ज्योतिष कुल 6 वेदांग हैं।

 

उपनिषद

 

उपनिषदों की विषयवस्तु दार्शनिक है, यह ग्रंथों के अंतिम भाग हैं।

 

इसलिए इन्हें वेदांत भी कहा जाता है।

 

उपनिषदों में प्रशनोत्तरी के माध्यम से अध्यात्म व दर्शन के विषय पर चर्चा की गयी है।उपनिषद श्रुति धर्मग्रन्थ हैं।

 

उपनिषदों में ईश्वर और आत्मा के स्वभाव और सम्बन्ध का विस्तृत वर्णन किया गया है।

 

यह भारतीय दर्शन (philosophy) की प्राचीनतम पुस्तकों में से एक हैं।

 

उपनिषदों की कुल संख्या 108 है। 

 

वृहदारण्यक, कठ, केन ऐतरेय, ईशा, मुण्डक तथा छान्दोग्य कुछ प्रमुख उपनिषद हैं।

 

 

सूत्र साहित्य

 

सूत्रों का सम्बन्ध मनुष्य के व्यवहार से है,

 

इसमें मनुष्य कर्तव्यों, वर्णाश्रम व्यवस्था तथा सामजिक नियमो का वर्णन है। 

 

श्रोत सूत्र, गृह सूत्र तथा धर्म सूत्र 3 सूत्र हैं।

 

 

स्मृतियाँ 

स्मृतियों में मनुष्य के जीवन के सम्पूर्ण कार्यों की विवेचना की गयी है,

 

इन्हें धर्मशास्त्र भी कहा जाता है।

 

ये वेदों की अपेक्षा कम जटिल हैं।

 

इनमे कहानीयों व उपदेशों का संकलन है। 

 

इनकी रचना सूत्रों के बाद हुई।

 

मनुसमृति व याज्ञवल्क्य स्मृति सबसे प्राचीन स्मृतियाँ हैं।

 

मनुस्मृति पर मेघतिथि, गोविन्दराज व कुल्लूकभट्ट ने टिपण्णी की है।

 

जबकि याज्ञवल्क्य स्मृति पर विश्वरूप, विज्ञानेश्वर तथा अपरार्क ने टिपण्णी की है।

 

ब्रिटिश शासनकाल में बंगाल के गवर्नर जनरल वारेन हेस्टिंग्स ने मनुस्मृति का अंग्रेजी में अनुवाद करवाया, अंग्रेजी में इसका नाम “द जेंटू कोड” रखा गया।

 

आरम्भ में स्मृतियाँ केवल मौखिक रूप से अग्रेषित की जाती थीं, स्मृति शब्द का अर्थ “स्मरण करने की शक्ति” होता है।

 

महाभारत

Medieval Indian Architecture

 

महाभारत विश्व के सबसे बड़े महाकाव्यों में से एक है,

 

इसकी रचना महर्षि  वेद व्यास ने की।

 

यह एक काव्य ग्रन्थ है।

 

इसे पंचम वेद भी कहा जाता है

 

 

यह प्रसिद्ध यूनानी ग्रंथों इलियड और ओडिसी की तुलना में काफी बड़ा है।

 

 

रचना के समय इसमें 8,800 श्लोक थे,

 

जिस कारण इसे जयसंहिता कहा जाता था। 

 

कालांतर में श्लोकों की संख्या बढ़कर 24,000 हो गयी, जिस कारण इसे भारत कहा गया। 

 

गुप्तकाल में श्लोकों की संख्या 1 लाख होने पर इसे महाभारत कहा गया। 

 

महाभारत को 18 भागों में बांटा गया है – आदि, सभा, वन, विराट, उद्योग, भीष्म, द्रोण, कर्ण, शल्य, सौप्तिक, स्त्री, शांति, अनुशासन, अश्वमेध, आश्रमवासी, मौसल, महाप्रस्थानिक तथा स्वर्गारोहण।

 

महाभारत में न्याय, शिक्षा, चिकित्सा, ज्योतिष, नीति, योग, शिल्प व खगोलविद्या इत्यादि का विस्तार से वर्णन किया गया है।

 

 

रामायण

 

रामायण की रचना महर्षि वाल्मीकि ने की।

 

रचना के समय रामायण में 6,000 श्लोक थे,

 

परन्तु समय के साथ साथ इसमें बढ़ोत्तरी होती गयी।

 

श्लोकों की संख्या पहले बढ़कर 12,000 हुई तथा उसके पश्चात् यह संख्या 24,000 तक पहुँच गयी।

 

24,000 श्लोक होने के कारण रामायण को चतुर्विशति सहस्री संहिता भी कहा जाता है।

 

रामायण को कुल 7 खंडो में विभाजित किया गया है – बालकाण्ड, अयोध्याकाण्ड, अरण्यकाण्ड, किष्किन्धाकाण्ड, सुन्दरकाण्ड, युद्धकाण्ड तथा उत्तरकाण्ड।

 

 

 

 

प्राचीन काल की कुछ महत्वपूर्ण पुस्तकें व उनके लेखक

पुस्तक का नाम लेखक
सूर्य सिद्धांत आर्यभट्ट
महाविभाषाशास्त्र वसुमित्र
रत्नावली हर्षवर्धन
मेघदूत कालिदास
नाट्यशास्त्र भरतमुनि
कामसूत्र वात्स्यायन
वृहतसंहिता वराहमिहिर
बुद्धचरित अश्वघोष
गीत गोविन्द जयदेव
पञ्चतंत्र विष्णु शर्मा
मालतीमाधव भवभूति
कादम्बरी बाणभट्ट
पृथ्वीराजरासो चंदबरदई

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